Friday, November 27, 2009

aye khuda

ऐ ख़ुदा, तुने जो हर शख्श के साथ परछाइयाँ लगा दीं हैं
भूले से भी कोई ख़ुद को भूल नहीं पाता
दस्तख़त आज भी मिल जाते हैं कुछ पन्नो पर,
ये वक़्त क्यों अपने निशां साथ नहीं ले जाता ,
आईने को मेरा चेहरा कुछ  अज़नबी सा लगता है,
क़ाश तेरा वजूद मेरे साए से मिट जाता.

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