Friday, January 14, 2011

बताने वाली बातें

बहुत दिनों के बाद आज फिर से कलम उठाई है,
डायरी के कवर से चिपकी हुई धूल कि परत हटाई है,
रंग कुछ पीला पड़ गया है पन्नो का,
नयेपन कि खुशबू भी गायब है,
सोच रही हूँ क्या लिखूँ
कोई कहानी, कविता या फिर सिर्फ चंद लाइनें,
कहने के लिए शब्द तो बहुत हैं
पर कहूँ क्या
ये अभी तक समझ नहीं पायी हूँ,
कोई पुराना धागा फिर से जोड़ा है आज,
कुछ अखब़ार भी हटाये हैं
तसवीरें भी बदली हैं कमरे की,
पर इनमे कहने के लिए क्या ख़ास है?
बताने वाली बातें कुछ और होती हैं शायद,
डायरी मुझे अभी भी देख रही है टुक टुक,
और कलम मेरे हाथ में अभी भी रुकी हुई है
एक बार फिर मैं सब तरफ देखती हूँ,
वही किताबें , अखबार,  तसवीरें,
और चाय के कुछ खाली कप,
पर बताने वाली बातें कुछ और होती हैं शायद.

1 comment:

  1. शानदार प्रस्तुति. आभार सहित शुभागमन...!
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